Friday, July 20, 2012

दिल पत्थर शीशा

और कितना है समझाना तुझे
कितना होगा मनाना तुझे!
दिल दिल कहाँ रहा! पत्थर हो चुका
इतना प्रयास लगा है सनम 
तुझे हर पल रिझाने में मुझे

और अब कितना है रुलाना मुझे 
कितना और तडपाना मुझे!
दिल दिल कहाँ रहा! शीशा हो चुका 
चुभते ही रहते टुकड़े शत-शत  
तेरी हर बात भुलाने में मुझे 

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विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'

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Tuesday, July 3, 2012

आंकलन


उतरा हूँ सूरज से 
तेरा तेज़ हरने को 
टपका हूँ चाँद से, तेरी 
शीतलता वरने को 

तू है ही इतनी ख़ास!

रातों को निकला हूँ
नीरवता तेरी पढने को
दिवस विचरा हूँ, तेरी 
चंचलता पकड़ने को 

हर पल में तेरा आभास।

शामिल हूँ साँझों में 
तेरी कल्प उड़ानें लिए 
झिलमिल हूँ सितारों में, बन
तेरे ज्वलंत रम्य के दीये

आतिश है मेरा प्रयास।

साथी हूँ वात का, तेरी 
सुगंध के सायों में 
हूँ बन्धु वारि का तेरे
ओष्ठ रसास्वदानों में 

मेरा आवरण है तेरी श्वास।

तेरा मोह समझने को 
हूँ शिष्य जज़्बात का 
प्रेम तेरे में दमकने को 
हूँ अंकुर विश्वास का 

तू मेरा संपूर्ण सत्व सारांश।।

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विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'

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Sunday, July 1, 2012

kid

no one is a kid to others..... and..... every1 is a kid to others
u just need d right vision to learn n satify ur thirst for knowledge.. and curiosity for exploration

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vps.. d royal warrior