Tuesday, May 17, 2011

Udaan

an awesome poem.. by Satyanshu n Devanshu... d duo behind ultimate hindi poems in d movie Udaan... told from d point of view of lead character Rohan...

(this was d poem hearing which Vikramaditya Motwane.. director of Udaan.. finalised other poems of d duo in d movie.. bt this one didn't find a landing place due to its non-link wid movie theme... but an absolute must-read:)

आदत उस परवाज़ की पड़ी है जिसके कुछ पार भी नहीं,
वहाँ जहाँ का सफ़र मिले तो चाहूँ मैं घर-बार भी नहीं,
वहाँ जहाँ से जहाँ खिलौने जैसा लगता है देखो तो,
वहाँ जहाँ होने को हो फिर पंखों की दरकार भी नहीं.

कच्ची किरणें सोख जहाँ अम्बर कुछ भूना चाह रहा हो,
घटता – बढ़ता हुआ चाँद अब कद से दूना चाह रहा हो,
कभी अब्र का कोमल टुकड़ा उलझ गया पैरों में ऐसे,
जैसे बारिश बने बिना मिट्टी को छूना चाह रहा हो.

ख्वाबों के पंखों पर उड़ता-उड़ता रोज़ निकल जाता हूँ,
अरमानों का असर कि हो जो भी ज़ंजीर फिसल जाता हूँ,
नहीं अकेला पाता खुद को, खुद टुकड़ों में बिखर-बिखर कर
एक नयी मंजिल की कोशिश प्यास बने, मचल जाता हूँ.

ओस छिड़कती हुई भोर को पलकों से ढँक कर देखा है,
दिन के सौंधे सूरज को इन हाथों में रख कर देखा है,
शाम हुयी तो लाल-लाल किस्से जो वहाँ बिखर जाते हैं,
गयी शाम अपनी ‘उड़ान’ में मैंने वो चख कर देखा है.